पत्तन का इतिहास

तूत्तुक्कुडि पत्तन का इतिहास

 

साहित्य में, ग्रीक कार्य - ’’ पेरियुप्लस आॅफ दी एरिथ्रियन सी’’ में  इसका पहला जिक्र, ईसवीं सन् 88 में किया गया। सन् 124 में, इसका पहला संदर्भ, प्टोल्मी द्वारा किया गया, जिसने देखा कि ’’कोल्तिक खाडी में’’ कराई नामक देश है, जहाँ पर्ल फिशरी, सोसीकौराय एवं कोलकोहौ तथा सोलान नदी के मुहाने पर, वाणिज्य केन्द्र है। इसमें शक की गंुजाइश ही नहीं होती कि प्टोलमी का सोसीकौराय, तूत्तुक्कुडि है और कोई नहीं।  सन् 200 से ईसवीं सन् 1000 तक, तूत्तुक्कुडि से संबंधित कोई रिकार्ड उपलब्ध नहीं है। फिर भी, तमिल साहित्य की अवधि के दौरान, पर्ल का जिक्र ंतो तेवारम, यीवाह चिंतामणि एवं पेरियपुरानम में है,  लेकिन स्रोत को अनदेखा करते हैं।  जेम्स हार्नल ने, मद्रास सरकार को अपनी रिपोर्ट में, मन्नार की खाडी के भारतीय पर्ल फिशरी पर रोशनी डालते हुए, तूत्तुक्कुडि पर चर्चा की।  इसके अलावा तमिलनाडु में, कोर्कै, पुहार ... इत्यादि  जैसे पत्तनों का उल्लेख है।
 
 
 
तमिल साहित्य एवं ऐतिहासिक रिकार्डों में, तूत्तुक्कुडि के पर्ल मत्स्य उद्योग एव पर्ल के व्यापारों पर रोशनी डाली गई है। इसाई सन् 7 से 9 तक, पाण्डया राजाओं द्वारा और इसाई सन् 10 से 12 तक की शताब्दी में, चोला राजाओं द्वारा शासन किया गया।  इसका भी जिक्र है कि तूत्तुक्कुडि में एक अच्छा सुरक्षित एवं प्राकृतिक हार्बर है, जहाँ जहाजों को सुरक्षित रूप से लंगर किया जा सकता है। पुर्तगाली, डच एवं अंग्रजों ने भारत में, भिन्न भिन्न कालावधि में शासन किया। पुर्तगाली वर्ष 1532 में तूत्तुक्कुडि आए। वर्ष 1649 में डच ने तूत्तुक्कुडि पर कब्जा किया। अनेकों यूरोपी पर्यटकों , विशेषतः अंग्रेेजी पर्यटकों ने 17वीं शताब्दी में, तूत्तुक्कुडि पर उनके अनुभवी विचार को, अत्यवधानी से रिकार्ड किया है। 
 
 
 
फिलिफ बाल्डीयस, एक अंग्रेजी मिशिनरी, जिन्होंने वर्ष 1675 में तूत्तुक्कुडि का दर्शन किया था, के द्वारा रिकार्ड किया गया अनुभवी विचार, ग्राफिक और बहुमूल्य है। डच के अधीन उन्नत हुई लाभप्रद 
 
 
मोती मत्स्य-पालन  को, शाॅन-डे-लाकोम द्वारा वाउचसेफ किया गया। इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने, तूत्तुक्कुडि  और  अन्य शहरों  जैसे कायलपट्टिनम, पुन्नकायल, मनपाड ... इत्यादि में,  1 जून, 1825 तक, अपना प्रशासन संभाल ंिलया।

 

भारत की स्वतंत्रता में तूत्तुक्कुडि की भूमिका

 

20 वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षाें में, तूत्तुक्कुडि , आजादी के संग्राम का नगर-दुर्ग बना। वी ओ चिदम्बरनार ने, राष्ट्रीयता एवं स्वतंत्रता के साथ साथ, स्वदेशी और बहिष्कार सिद्धान्त का बीज बोया। कठिन परिश्रम और संघर्ष झेलने के बाद, वे,  वर्ष 1907 में, पहली स्वदेशी नेविगेशन कंपनी की शुरूआत कर सके। स्वदेशी जहाज, एस.एस. गेलिया और एस.एस. लावो , तूत्तुक्कुडि एवं कोलंबो के बीच संचालित किए गए थे। प्रतिकूल वातावरण के बावजूद, स्वदेशी जहाज़ की शुरूआत करना, आज़ादी की लडाई का एक महत्वपूर्ण मील पत्थर बना।  
 
 
सुब्रमणियम शिवा एवं वांची एयर जैसे देशभक्तों ने, वी ओ चिदम्बरम को, प्रवासीय शासनविधि के शिकंजे से आजादी हासिल करने हेतु भारतीय स्वतंरात्रता का बीज फैलाने में मदद की। अतः तूत्तुक्कुडि ने, महात्मा गांधी द्वारा आरंभ की गइ्र्र स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख भूमिका अदा की।